Anniversary video editing | Anniversary video kinemaster

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  हेलो दोस्तों इस आर्टिकल पोस्ट में मैं आपको बताने वाला हूं कि किस तरीके से आप एनिवर्सरी वीडियो एडिट कर सकते दोस्तों मैं आपके लिए एक एनिवर्सरी टेंपलेट लेकर आया हूं दोस्तों उस टेंप्लेट का उपयोग करके  एनिवर्सरी वीडियो एडिट कर सकते हो दोस्तों अगर इसी टेंप्लेट आपको चाहिए तो आपको इस ब्लॉक पोस्ट के अंदर लेफ्ट के अंदर आपको लिंक मिल जाएगी वहां से इसको डाउनलोड कर सकते हो दोस्तों इस वीडियो को बनाने के लिए एनिवर्सरी वीडियो एडिट करने के लिए आपको काइन मास्टर एप्लीकेशन की जरूरत होगी वह एप्लीकेशन आपको प्ले स्टोर पर आसानी से उपलब्ध हो जाएगा आपसे हो तो वहां से डाउनलोड कर सकते हो और आप गूगल से भी से डाउनलोड कर सकते हो दोस्तों किनेमास्टर एप्लीकेशन एक अच्छा एप्लीकेशन है जो वीडियो एडिट करने में बहुत आसान नहीं होती है इसमें वीडियो एडिट करने में आपको किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होगी यह बहुत बिल्कुल सिंपल और साधारण एप्लीकेशन में और वीडियो एडिटिंग के लिए सबसे अच्छा एंड्रॉयड एप्लीकेशन है जो कि आपकी मोबाइल में एडिटिंग के लिए होना चाहिए दोस्तों किनेमास्टर एप्लीकेशन कैसे उसे करते हैं किस तरीके सेकंड मोस्...

कंजूस सेठ की करामात | kanjus seth ki karamat


 एक गांव में एक जयचंद नाम का सेठ रहता था। गांव में उसकी एक किराणा की दुकान थी और वह दुकान बहुत अच्छी चलती थी। उस दुकान का मालिक जयचंद बहुत ही कंजूस था। गांव में किसी को भी कोई चीज या समान वस्तु उधार नहीं देता था। उस कंजूस सेठ के दुकान पर मोहन नाम का एक आदमी रहता था।उसको सेठ पगार भी कभी टाइम पर नहीं देता था। मोहन बहुत मेहनती था।दिन रात काम करता था फिर भी सेठ का स्वभाव ऐसा था की पैसे होते हुए भी वह टाइम पर नहीं देता था। जबकि दुकान बहुत अच्छी चलती थी। 


एक दिन मोहन बहुत उदास घर पर बैठा था। तभी उसका एक दोस्त घर पर उससे मिलने आया। उसके दोस्त ने मोहन को उदास देखकर पूछा कि तुम इतना उदास क्यों बैठे हो सब ठीक तो है ना तभी मोहन ने जवाब दिया नहीं दोस्त मेरे बच्चों की फीस भरनी है स्कूल से टीचर के बहुत बार फोन आ चुके हैं। मेरे महीने की पगार भी बन गई लेकिन  मेरे सेठ ने अभी तक मुझे पगार नहीं दी है। जबकि मैंने सेठ को बहुत बार बोल दिया बच्चों की फीस भरनी है। काफी बार बोलने के बाद भी सेठ लापरवाह है अभी तक मुझे एक रुपया तक नहीं दिया। सेठ की दुकान बहुत अच्छी चलती है पैसे भी खूब आते हैं।

 

मोहन के दोस्त ने सारी बात जानकर मोहन से कहा तुम चिंता मत करो मैं सेठ को अच्छा सबक सिखाऊंगा ताकि आगे से किसी के साथ ऐसा नहीं करेगा। मोहन ने अपने दोस्त से कहा मेरे पास कुछ पैसे हैं और मेरा एक दोस्त है जो अच्छे पैसे वाला है जो शहर मे अच्छे पैसे कमाता है वहां उसका खुद का बिजनेस है।  मै और मेरा दोस्त मिलकर एक उसके बगल में ही दुकान खोलेंगे और दुकान में मिलने वाली हर वस्तु सेठ से सस्ते मे ही देंगे भले ही हमें मुनाफा बिलकुल ना हो। मोहन व उसके दोस्त ने मिलकर दुकान खोल दी। अब उस दुकान में सेठ से सस्ता सामान मिलने से काफी ग्राहक उनसे जुड़ते गए धीरे-धीरे सेठ के दुकान से बिक्री कम हो गई। 


सेठ कभी किसी को उदार सामान नहीं देता था। क्योंकि यहां पूरे गांव में आसपास कोई भी दुकान नहीं थी। सेठ को पता था लोगों को सामान तो यहां से लेना ही पड़ेगा चाहे कैसे भी पैसे उधार लाकर ले जाए ।लोगों को मजबूर होकर सेठ की दुकान से सामान लेना पड़ता था चाहे सेठ मनचाही रेट लगाए। धीरे-धीरे समय के साथ-साथ सेठ की दुकान बिल्कुल कम चलने लगी। अब सेठ को पहले जैसा मुनाफा नहीं रहा और दुकान पर एक स्टाफ भी बड़ी मुश्किल से रख पा रहा था। अब सेठ की दुकान पर खाली मोहन ही था।मोहन के अलावा दो और थे उनको सेठ ने निकाल दिया क्योंकि इतने पैसे उनको देने के लिए अब बचते नहीं दुकान बिल्कुल कम चलने लगी। अब मोहन के दोस्त ने मोहन से कहा अब तुम वहां से नौकरी छोड़ दो अब सेठ को पता चलेगी तुम्हारी अहमियत कितनी है। 


मोहन ने वैसा ही किया सेठ की स्थिति ऐसी हो गई उसको अपने खुद की पत्नी को दुकान पर रखना पड़ा लेकिन उन दोनों से दुकान नहीं चल पा रही थी। पत्नी घर का काम करे या दुकान का वह दुकान मे मोहन की तरह काम नहीं कर पा रही थी। सेठ को मोहन की अहमियत नजर आई उसको बहुत पछतावा हुआ। एक दिन शाम के समय वह सेठ पैसे लेकर मोहन के घर आया और बोला यह लो तुम्हारे पहले की पगार। मोहन को पगार देने के बाद सेठ ने मोहन से विनम्र निवेदन किया और बोला तुम वापस मेरी दुकान पर चलो आगे से मैं कभी तुम्हारी पगार  नहीं रखूंगा समय पर दे दूंगा। 


मोहन वापस सेठ की दुकान पर चला गया और अब हर महीने टाइम पर मोहन को पगार मिल जाती थी। कुछ दिनों बाद में मोहन के दोस्त ने वह दुकान वापस हटा ली यह दुकान तो सिर्फ सेठ को सबक सिखाने के लिए खोली थी। अब सेठ लोगों को उधार सामान भी दे देता था और नहीं  मनचाही रेट लगता था । उसे मालूम हो गया कि बुरा काम का नतीजा बुरा ही होता है।


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